एक से एक जुनूँ का मारा इस बस्ती में रहता है
एक हमीं हुशियार थे यारो एक हमीं बद-नाम हुए
Jaun Eliya
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Anwar Masood
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Allama Iqbal
Habib Jalib
Gulzar
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Mohsin Naqvi
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कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
वो रातें चाँद के साथ गईं वो बातें चाँद के साथ गईं
कब लौटा है बहता पानी बिछड़ा साजन रूठा दोस्त
कल हम ने सपना देखा है
हक़ अच्छा पर उस के लिए कोई और मिरे तो और अच्छा
'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या
हमें तुम पे गुमान-ए-वहशत था हम लोगों को रुस्वा किया तुम ने
इक साल गया इक साल नया है आने को
यूँही तो नहीं दश्त में पहुँचे यूँही तो नहीं जोग लिया
किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगे
फिर शाम हुई
शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती