तेग Poetry

दयार-ए-ख़्वाब को निकलूँगा सर उठा कर मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

इश्क़ उस से किया है तो ये गर याद भी रक्खो

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

पेश हर अहद को इक तेग़ का इम्काँ क्यूँ है

अली अकबर अब्बास

बहार बन के जब से वो मिरे जहाँ पे छाए हैं

बे-सबात सुब्ह शाम और मिरा वजूद

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

सितमगरी भी मिरी कुश्तगाँ भी मेरे थे

ज़ुबैर रिज़वी

क्यूँ हो न गिर के कासा-ए-तदबीर पाश पाश

ज़ेबा

कब तलक ये शाला-ए-बे-रंग मंज़र देखिए

ज़ेब ग़ौरी

तमन्ना है किसी की तेग़ हो और अपनी गर्दन हो

ज़रीफ़ लखनवी

आसूदा-ए-महफ़िल अभी दम भर न हुआ था

ज़हीर अहमद ताज

आज की तन्हाई से निकलो कल की आबादी में आओ

ज़हीर काश्मीरी

न घाट है कोई अपना न घर हमारा हुआ

ज़फ़र इक़बाल

किस मुँह से कहें गुनाह क्या हैं

वज़ीर अली सबा लखनवी

देख कर ख़ुश-रंग उस गुल-पैरहन के हाथ पाँव

वज़ीर अली सबा लखनवी

सिदरत-उल-वस्ल के साए का तलबगार हूँ मैं

वक़ार ख़ान

ज़हराब पीने वाले अमर हो के रह गए

वामिक़ जौनपुरी

साथ ग़ैरों के है सदा गट-पट

वलीउल्लाह मुहिब

पहचाने तू हर-दम वही हर आन वही है

वलीउल्लाह मुहिब

दिला ये मय-कदा-ए-इश्क़ है शराब तू पी

वलीउल्लाह मुहिब

वो क्या दिन थे जो क़ातिल-बिन दिल-ए-रंजूर रो देता

वली उज़लत

नयन में ख़ूँ भर आया दिल में ख़ार-ए-ग़म छुपा शायद

वली उज़लत

माह-ए-कामिल हो मुक़ाबिल यार के रू से चे-ख़ुश

वली उज़लत

ख़ुदा किसी कूँ किसी साथ आश्ना न करे

वली उज़लत

हुए हम जब से पैदा अपने दीवाने हुए होते

वली उज़लत

दिखाते हैं जो ये सनम देखते हैं

वाजिद अली शाह अख़्तर

नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

जिस आईने में भी झाँका नज़र उसी से मिली

उमर अंसारी

ख़ाक-ए-हिंद

तिलोकचंद महरूम

गर मेरे बैठने से वो आज़ार खींचते

मीर तस्कीन देहलवी

दिल किस की तेग़-ए-नाज़ से लज़्ज़त-चशीदा है

मीर तस्कीन देहलवी

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