तेग Poetry (page 9)

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले

ग़ालिब

एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब

ग़ालिब

दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या

ग़ालिब

देख कर दर-पर्दा गर्म-ए-दामन-अफ़्शानी मुझे

ग़ालिब

दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए

ग़ालिब

बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी

ग़ालिब

बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी ये डराता है मुझे

ग़ालिब

आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए

ग़ालिब

मुझे मंज़ूर काग़ज़ पर नहीं पत्थर पे लिख देना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

वही में हूँ वही ख़ाली मकाँ है

फ़ारूक़ नाज़की

वही मैं हूँ वही ख़ाली मकाँ है

फ़ारूक़ नाज़की

मगर इन आँखों में किस सुब्ह के हवाले थे

फ़ारूक़ मुज़्तर

मचलती है मिरे सीने में तेरी आरज़ू क्या क्या

फ़रोग़ हैदराबादी

तह-ए-बदन कहीं बेदार होता जाता हूँ

फ़रहत एहसास

लगे हुए हैं ज़माने के इंतिज़ाम में हम

फ़रहत एहसास

औरों ने उस गली से क्या क्या न कुछ ख़रीदा

फ़रहत एहसास

मैं एक बूँद समुंदर हुआ तो कैसे हुआ

फ़राग़ रोहवी

कूचा-ए-जानाँ में जा निकले जो ग़िल्माँ भूल कर

फ़ानी बदायुनी

की वफ़ा यार से एक एक जफ़ा के बदले

फ़ानी बदायुनी

इब्तिदा-ए-इश्क़ है लुत्फ़-ए-शबाब आने को है

फ़ानी बदायुनी

वासोख़्त

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तीन आवाज़ें

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

लाओ तो क़त्ल-नामा मिरा

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

इधर न देखो

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

एक शहर-आशोब का आग़ाज़

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दुआ

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सितम की रस्में बहुत थीं लेकिन न थी तिरी अंजुमन से पहले

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हमीं से अपनी नवा हम-कलाम होती रही

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ऐ मुबारज़-तलब

फ़हीम शनास काज़मी

लंदन में जश्न-ए-ग़ालिब

दिलावर फ़िगार

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