समुद्र Poetry

दूसरा जन्म

बलराज कोमल

जो महका रहे तेरी याद सुहानी में

बीना गोइंदी

ज़ाबता

हबीब जालिब

दूर किनारा

मीराजी

न शिकवा लब तक आएगा न नाला दिल से निकलेगा

बसाई मैं ने जो क़ल्ब-ए-हज़ीं में

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

बसाई मैं ने जो क़ल्ब-ए-हज़ीं में

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

छोड़ कर दिल में गई वहशी हवा कुछ भी नहीं

ज़ुहूर नज़र

नज़्म

ज़ुबैर रिज़वी

तिलिस्म-ए-हर्फ़-ओ-हिकायत उसे भी ले डूबा

ज़ुबैर रिज़वी

छोड़ कर घर की फ़ज़ा रानाइयाँ पछता गईं

ज़ुबैर रिज़वी

माशूक़ जो ठिगना है तो आशिक़ भी है नाटा

ज़ियाउल हक़ क़ासमी

दिल के ज़ख़्मों पे वो मरहम जो लगाना चाहे

ज़ियाउल हक़ क़ासमी

रेज़ा रेज़ा तिरे चेहरे पे बिखरती हुई शाम

ज़िया ज़मीर

राह-रौ

ज़िया जालंधरी

कसक

ज़िया जालंधरी

हरजाई

ज़िया जालंधरी

बड़ा शहर

ज़िया जालंधरी

गो आज अँधेरा है कल होगा चराग़ाँ भी

ज़िया फ़तेहाबादी

आँख से आँसू ढलका होता

ज़िया फ़तेहाबादी

किस क़दर महदूद कर देता है ग़म इंसान को

ज़ीशान साहिल

जो मेरे बस में है उस से ज़ियादा क्या करना

ज़ीशान साहिल

रात दमकती है रह रह कर मद्धम सी

ज़ेब ग़ौरी

मुझ से ऐसे वामांदा-ए-जाँ को बिस्तर-विस्तर क्या

ज़ेब ग़ौरी

हो चुके गुम सारे ख़द्द-ओ-ख़ाल मंज़र और मैं

ज़ेब ग़ौरी

लायल-पूर के मच्छर

ज़रीफ़ जबलपूरी

वाए नाकामी-ए-क़िस्मत कि भँवर से बच कर

ज़की काकोरवी

तंग कमरों में है महबूस फ़ज़ा का मतलब

ज़काउद्दीन शायाँ

ख़ामोशी ख़ुद अपनी सदा हो ये भी तो हो सकता है

ज़का सिद्दीक़ी

बू-ए-गुल रक़्स में है बाद-ए-ख़िज़ाँ रक़्स में है

ज़ाहिदा ज़ैदी

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