समुद्र Poetry (page 14)

वही साहिल वही मंजधार मुझ को

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

माज़ी! तुझ से ''हाल'' मिरा शर्मिंदा है

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

शौक़ बरहना-पा चलता था और रस्ते पथरीले थे

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

बयाबाँ दूर तक मैं ने सजाया था

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

आफ़ाक़ में फैले हुए मंज़र से निकल कर

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

जो दिलबर की मोहब्बत दिल से बदले

ग़ुलाम मौला क़लक़

नुमूद पाते हैं मंज़रों की शिकस्त से फ़तह के बहाने

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिल गई है बादिया-पैमाई से मंज़िल मिरी

ग़ुलाम हुसैन साजिद

दिल की मिट्टी चुपके चुपके रोती है

ग़ुफ़रान अमजद

हम कि साहिल के तसव्वुर से सहम जाते हैं

ग़ज़नफ़र

दर्द की कौन सी मंज़िल से गुज़रते होंगे

ग़ज़नफ़र

साज़-ए-हयात क़ैद-ओ-सलासिल कहें किसे

ग़यास अंजुम

कोई हमराह नहीं राह की मुश्किल के सिवा

ग़नी एजाज़

न बंधे तिश्नगी-ए-ज़ौक़ के मज़मूँ 'ग़ालिब'

ग़ालिब

ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़्लान-ए-बे-परवा नमक

ग़ालिब

सरापा रेहन-इश्क़-ओ-ना-गुज़ीर-उल्फ़त-हस्ती

ग़ालिब

लताफ़त बे-कसाफ़त जल्वा पैदा कर नहीं सकती

ग़ालिब

जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने महमिल बाँधा

ग़ालिब

हुजूम-ए-ग़म से याँ तक सर-निगूनी मुझ को हासिल है

ग़ालिब

धमकी में मर गया जो न बाब-ए-नबर्द था

ग़ालिब

हाँ काहिश-ए-फ़ुज़ूल का हासिल भी कुछ नहीं

गौहर होशियारपुरी

वो मौज-ए-ख़ुनुक शहर-ए-शरर तक नहीं आई

फ़ुज़ैल जाफ़री

उधार

फ़ुर्क़त काकोरवी

तुम हरीम-ए-नाज़ में बैठे हो बेगाने बने

फ़िगार उन्नावी

तूफ़ाँ से बच के दामन-ए-साहिल में रह गया

फ़िगार उन्नावी

हासिल-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ नाकाम है

फ़िगार उन्नावी

कोहसारों में नहीं है कि बयाबाँ में नहीं

फ़ाज़िल अंसारी

गुलज़ार में एक फूल भी ख़ंदाँ तो नहीं है

फ़ाज़िल अंसारी

ख़बर मफ़क़ूद है लेकिन

फर्रुख यार

सिलसिले ख़्वाब के अश्कों से सँवरते कब हैं

फ़ारूक़ शमीम

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