गुलज़ार में एक फूल भी ख़ंदाँ तो नहीं है

गुलज़ार में एक फूल भी ख़ंदाँ तो नहीं है

कुछ और है ये दौर-ए-बहाराँ तो नहीं है

है चाक-ब-दामाँ ही तू ऐ लाला-ए-ख़ुद-सर

गुल तेरी तरह दाग़-ब-दामाँ तो नहीं है

अच्छा ही हुआ डूब गया मेरा सफ़ीना

अब कश्मकश-ए-साहिल-ओ-तूफ़ाँ तो नहीं है

तक़दीर की बात और है वर्ना दिल-ए-मुज़्तर

उम्मीद के बर आने का इम्काँ तो नहीं है

इस बार-ए-गराँ का है उठाना बहुत आसाँ

ग़म है किसी कम-ज़र्फ़ का एहसाँ तो नहीं है

पामाल करे क्यूँ कोई बे-दर्द कि सब्ज़ा

बेगाना सही नंग-ए-गुलिस्ताँ तो नहीं है

क़ीमत मिरे आँसू की फ़क़त एक तबस्सुम

शबनम की तरह ये कोई अर्ज़ां तो नहीं है

क्यूँ मुझ पे नज़र है तिरी ऐ गर्दिश-ए-दौराँ

हस्ती मिरी दुनिया में नुमायाँ तो नहीं है

कुछ दाग़ हैं कुछ ज़ख़्म हैं 'फ़ाज़िल' के जिगर में

मुफ़लिस है मगर बे-सर-ओ-सामाँ तो नहीं है

(788) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Gulzar Mein Ek Phul Bhi KHandan To Nahin Hai In Hindi By Famous Poet Fazil Ansari. Gulzar Mein Ek Phul Bhi KHandan To Nahin Hai is written by Fazil Ansari. Complete Poem Gulzar Mein Ek Phul Bhi KHandan To Nahin Hai in Hindi by Fazil Ansari. Download free Gulzar Mein Ek Phul Bhi KHandan To Nahin Hai Poem for Youth in PDF. Gulzar Mein Ek Phul Bhi KHandan To Nahin Hai is a Poem on Inspiration for young students. Share Gulzar Mein Ek Phul Bhi KHandan To Nahin Hai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.