मेंहदी Poetry

मैं बच गई माँ

ज़ेहरा निगाह

भूली-बिसरी यादों को लिपटाए हुए हूँ

ज़ेहरा निगाह

बात मेहंदी से लहू तक आ गई

ज़फ़र कलीम

तू अपने पाँव की मेहंदी छुड़ा के दे ऐ महर

वज़ीर अली सबा लखनवी

बहार आधी गुज़र गई हाए हम क़ैदी हैं ज़िंदाँ के

वली उज़लत

मिरे अंदर कहीं पर खो गई है

वजीह सानी

पागल लड़की

उरूज ज़ेहरा ज़ैदी

मेहंदी

उरूज ज़ेहरा ज़ैदी

रेशम रेशम तितली देखूँ ख़्वाब-नगर की वादी में

ताैफ़ीक़ साग़र

कब अपनी ख़ुशी से वो आए हुए हैं

तअशशुक़ लखनवी

ले के अपनी ज़ुल्फ़ को वो प्यारे प्यारे हाथ में

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

अपना अपना रंग दिखलाती हैं जानी चूड़ियाँ

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

ऐ हमराज़

सूफ़िया अनजुम ताज

दिल बचे क्यूँकर बुतों की चश्म-ए-शोख़-ओ-शंग से

ज़ौक़

तू ज़िद से शब-ए-वस्ल न आया तो हुआ क्या

शाह नसीर

बताओ तो तुम्हें कैसी लगी है

सय्यदा अरशिया हक़

उन बुतों से रब्त तोड़ा चाहिए

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

रुख़-ए-रौशन दिखाइए साहब

सख़ी लख़नवी

घर में साक़ी-ए-मस्त के चल के

सख़ी लख़नवी

अल्लाह-रे नाज़ुकी कि जवाब-ए-सलाम में

रियाज़ ख़ैराबादी

वो कौन है दुनिया में जिसे ग़म नहीं होता

रियाज़ ख़ैराबादी

जो थे हाथ मेहंदी लगाने के क़ाबिल

रियाज़ ख़ैराबादी

हर मौसम में ख़ाली-पन की मजबूरी हो जाओगे

रउफ़ रज़ा

तेरी मेहंदी में मिरे ख़ूँ की महक आ जाए

राशिद अमीन

पत्थर पड़े हुए कहीं रस्ता बना हुआ

राशिद अमीन

एक भी ख़्वाहिश के हाथों में न मेहंदी लग सकी

इक़बाल साजिद

ऐसे घर में रह रहा हूँ देख ले बे-शक कोई

इक़बाल साजिद

मेरे आगे तज़्किरा माशूक़-ओ-आशिक़ का बुरा

इमदाद अली बहर

ख़ुदा-परस्त हुए हम न बुत-परस्त हुए

इमदाद अली बहर

जो मेहंदी का बुटना मला कीजिएगा

हातिम अली मेहर

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