सूरज Poetry

मैं लौह-ए-अर्ज़ पर नाज़िल हुआ सहीफ़ा हूँ

अली अकबर अब्बास

ज़ुहर-ए-आशिक़ी से डरता हूँ

दाऊद मोहसिन

इक उम्र से जिस को लिए फिरता हूँ नज़र में

अहमद फ़ाख़िर

कभी जो नूर का मज़हर रहा है

अली अकबर अब्बास

देखे-भाले रस्ते थे

असरार ज़ैदी

कोई शिकवा तो ज़ेर-ए-लब होगा

ए जी जोश

झाँकते लोग खुले दरवाज़े

महमूद शाम

राब्ता टूट न जाए कहीं ख़ुद-बीनी से

असरार ज़ैदी

अफ़्सूँ पहली बारिश का

मसूद मिर्ज़ा नियाज़ी

अफ़्सोस तुम्हें कार के शीशे का हुआ है

हबीब जालिब

सुब्ह का धोका हुआ है शाम पर

फ़ारूक़ इंजीनियर

सब ने देखा मुझे उठता हुआ मेरे घर से

अजमल सिद्दीक़ी

हश्र-ए-ज़ुल्मात से दिल डरता है

महमूद शाम

कितनी शिद्दत से तुझे चाहा था

महमूद शाम

दूर किनारा

मीराजी

स्कूल

अख़्तर हुसैन जाफ़री

इश्क़-आबाद की शाम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

इसे कहना

अर्श सिद्दीक़ी

ग़म के बे-नूर मज़ारों का गला घोंट आया

मुझ को तेरी चाहत ज़िंदा रखती है

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

सियाह पट्टी

ज़ुबैर रिज़वी

कई कोठे चढ़ेगा वो कई ज़ीनों से उतरेगा

ज़ुबैर रिज़वी

कहीं से आया तुम्हारा ख़याल वैसे ही

ज़ुबैर क़ैसर

कश्कोल है तो ला इधर आ कर लगा सदा

ज़िया जालंधरी

आँख से आँसू ढलका होता

ज़िया फ़तेहाबादी

मिरी आँखों में जो थोड़ी सी नमी रह गई है

ज़िया फ़ारूक़ी

शाम का पहला तारा

ज़ेहरा निगाह

शहर के एक कुशादा घर में

ज़ेहरा निगाह

नया घर

ज़ेहरा निगाह

इंसाफ़

ज़ेहरा निगाह

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