सूरज Poetry (page 38)

बद-सोहबतों को छोड़ शरीफ़ों के साथ घूम

अब्दुल अहद साज़

उसे मैं ने नहीं देखा

अब्बास ताबिश

सुब्ह की पहली किरन पहली नज़र से पहले

अब्बास ताबिश

रम्ज़-गर भी गया रम्ज़-दाँ भी गया

अब्बास ताबिश

पस-ए-ग़ुबार भी उड़ता ग़ुबार अपना था

अब्बास ताबिश

कोई मिलता नहीं ये बोझ उठाने के लिए

अब्बास ताबिश

कस कर बाँधी गई रगों में दिल की गिरह तो ढीली है

अब्बास ताबिश

जहान-ए-मर्ग-ए-सदा में इक और सिलसिला ख़त्म हो गया है

अब्बास ताबिश

फ़क़त माल-ओ-ज़र-ए-दीवार-ओ-दर अच्छा नहीं लगता

अब्बास ताबिश

दहन खोलेंगी अपनी सीपियाँ आहिस्ता आहिस्ता

अब्बास ताबिश

चाँद को तालाब मुझ को ख़्वाब वापस कर दिया

अब्बास ताबिश

अपने अपने सूराख़ों का डर

अब्बास अतहर

लाला-ओ-गुल पे ख़िज़ाँ आज भी जब छाई है

आसी रामनगरी

हैं अहल-ए-चमन हैराँ ये कैसी बहार आई

आसी रामनगरी

घरौंदे ख़्वाबों के सूरज के साथ रख लेते

आशुफ़्ता चंगेज़ी

मुमकिन है कि सदियों भी नज़र आए न सूरज

आनिस मुईन

वो कुछ गहरी सोच में ऐसे डूब गया है

आनिस मुईन

रोज़ ख़्वाबों में आ के चल दूँगा

आलोक श्रीवास्तव

तू पयम्बर सही ये मो'जिज़ा काफ़ी तो नहीं

आल-ए-अहमद सूरूर

लो अँधेरों ने भी अंदाज़ उजालों के लिए

आल-ए-अहमद सूरूर

ख़ुश्क खेती है मगर उस को हरी कहते हैं

आल-ए-अहमद सूरूर

हर इक जन्नत के रस्ते हो के दोज़ख़ से निकलते हैं

आल-ए-अहमद सूरूर

पाँव पत्तों पे धीरे से धरता हुआ

आदिल रज़ा मंसूरी

चाँद तारे बना के काग़ज़ पर

आदिल रज़ा मंसूरी

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