सूरज Poetry (page 17)

अन-देखी ज़मीं पर

इंजिला हमेश

तसव्वुरात में वो ज़ूम कर रहा था मुझे

इनआम आज़मी

काँटों में ही कुछ ज़र्फ़-ए-समाअत नज़र आए

इमदाद निज़ामी

कभी तो देखे हमारी अरक़-फ़िशानी धूप

इमदाद अली बहर

बशर रोज़-ए-अज़ल से शेफ़्ता है शान-ओ-शौकत का

इमदाद अली बहर

'इश्क़ी'-साहिब लिखना है तो कोई नई तहरीर लिखो

इलियास इश्क़ी

हम से अपने गाँव की मिट्टी के घर छीने गए

इफ़्तिख़ार क़ैसर

तेरी आँखों की चमक बस और इक पल है अभी

इफ़्तिख़ार नसीम

बन गया है जिस्म गुज़रे क़ाफ़िलों की गर्द सा

इफ़्तिख़ार नसीम

धुँद

इफ़्तेख़ार जालिब

रात भर दर्द की बरसात में धोई हुई सुब्ह

इफ़्तिख़ार बुख़ारी

शिकस्त

इफ़्तिख़ार आरिफ़

रौशन दिल वालों के नाम

इफ़्तिख़ार आरिफ़

पुराने दुश्मन

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मुकालिमा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

वही प्यास है वही दश्त है वही घराना है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सितारों से भरा ये आसमाँ कैसा लगेगा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शिकस्ता-पर जुनूँ को आज़माएँगे नहीं क्या

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सब चेहरों पर एक ही रंग और सब आँखों में एक ही ख़्वाब

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मिरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो'तबर कर दे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़्वाब देखने वाली आँखें पत्थर होंगी तब सोचेंगे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कहीं से कोई हर्फ़-ए-मो'तबर शायद न आए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ग़ज़ल हो गई जब भी सोचा तुम्हें

इब्राहीम अश्क

वो रातें चाँद के साथ गईं वो बातें चाँद के साथ गईं

इब्न-ए-इंशा

एक बार कहो तुम मेरी हो

इब्न-ए-इंशा

राज़ कहाँ तक राज़ रहेगा मंज़र-ए-आम पे आएगा

इब्न-ए-इंशा

लोग हिलाल-ए-शाम से बढ़ कर पल में माह-ए-तमाम हुए

इब्न-ए-इंशा

कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहो

इब्न-ए-इंशा

दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो

इब्न-ए-इंशा

लोगों ने आकाश से ऊँचा जा कर तमग़े पाए

हुसैन माजिद

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