मुकालिमा

''हवा के पर्दे में कौन है जो चराग़ की लौ से खेलता है

कोई तो होगा

जो ख़िलअत-ए-इंतिसाब पहना के वक़्त की रौ से खेलता है

कोई तो होगा

हिजाब को रम्ज़-ए-नूर कहता है और परतव से खेलता है

कोई तो होगा''

''कोई नहीं है

कहीं नहीं है

ये ख़ुश-यक़ीनों के ख़ुश-गुमानों के वाहिमे हैं जो हर सवाली से बैअत-ए-ए'तिबार लेते हैं

उस को अंदर से मार देते हैं''

''तो कौन है वो जो लौह-ए-आब-ए-रवाँ पे सूरज को सब्त करता है और बादल उछालता है

जो बादलों को समुंदरों पर कशीद करता है और बतन-ए-सदफ़ में ख़ुर्शीद ढालता है

वो संग में आग, आग में रंग, रंग में रौशनी के इम्कान रखने वाला

वो ख़ाक में सौत, सौत में हर्फ़, हर्फ़ में ज़िंदगी के सामान रखने वाला

नहीं कोई है

कहीं कोई है

कोई तो होगा''

(1120) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Mukalima In Hindi By Famous Poet Iftikhar Arif. Mukalima is written by Iftikhar Arif. Complete Poem Mukalima in Hindi by Iftikhar Arif. Download free Mukalima Poem for Youth in PDF. Mukalima is a Poem on Inspiration for young students. Share Mukalima with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.