सूरज Poetry (page 18)

ढली जो शाम नज़र से उतर गया सूरज

हुसैन ताज रिज़वी

ज़मीं का दम निकलता जा रहा है

हुसैन आबिद

ज़मीं का दम निकलता जा रहा है

हुसैन आबिद

ज़रा सी बात पर नाराज़ होना रंजिशें करना

हुमैरा रहमान

मैं आब-ए-इश्क़ में हल हो गई हूँ

हुमैरा राहत

तज़ाद

हिमायत अली शाएर

बगूला

हिमायत अली शाएर

साए चमक रहे थे सियासत की बात थी

हिमायत अली शाएर

पिंदार-ए-ज़ोहद हो कि ग़ुरूर-ए-बरहमनी

हिमायत अली शाएर

आँख की क़िस्मत है अब बहता समुंदर देखना

हिमायत अली शाएर

दोस्तों से तो किनारा भी नहीं कर सकता

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

जो मय-कदे में बहकते हैं लड़खड़ाते हैं

हयात वारसी

मैं ख़ाल-ओ-ख़द का सरापा तसव्वुरात में था

हयात लखनवी

वक़्त का सूरज जलन के रूप में जब आ गया

हसीर नूरी

लोग कहते हैं कि सूरज में अँधेरा क्यूँ है

हसीर नूरी

उस की आँखें हरे समुंदर उस की बातें बर्फ़

हसन रिज़वी

मुँह अपनी रिवायात से फेरा नहीं करते

हसन रिज़वी

मैं ने उस को बर्फ़ दिनों में देखा था

हसन रिज़वी

अब के यारो बरखा-रुत ने मंज़र क्या दिखलाए हैं

हसन रिज़वी

क़ल्ब-ओ-जाँ में हुस्न की गहराइयाँ रह जाएँगी

हसन नईम

आई पतझड़ गिरे फ़स्ल-ए-गुल के निशाँ रात-भर में

हसन अख्तर जलील

ख़्वाब अपने मिरी आँखों के हवाले कर के

हसन अब्बासी

अधूरे मौसमों का ना-तमाम क़िस्सा

हसन अब्बास रज़ा

ज़िंदगी क्या है वफ़ा क्या है अक़ीदत क्या है

हरी मेहता

वो मुझे सोज़-ए-तमन्ना की तपिश समझा गया

हनीफ़ अख़गर

गली का मंज़र बदल रहा था

हम्माद नियाज़ी

पोशीदा अजब ज़ीस्त का इक राज़ है मुझ में

हामिद मुख़्तार हामिद

दिन को न घर से जाइए लगता है डर मुझे

हामिद जीलानी

हमीं हैं दर-हक़ीक़त अपने क़ारी

हामिद हुसैन हामिद

बे-कराँ दरिया हूँ ग़म का और तुग़्यानी में हूँ

हमीद नसीम

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