सूरज Poetry (page 20)
झाँकता भी नहीं सूरज मिरे घर के अंदर
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
गर्मियों भर मिरे कमरे में पड़ा रहता है
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
राह से मुझ को हटा कर ले गया
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
कहने सुनने का अजब दोनों तरफ़ जोश रहा
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
एक ज़ाती नज़्म
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
''अटलांटिक सिटी''
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
पहले इक शख़्स मेरी ज़ात बना
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़र नज़र में अदा-ए-जमाल रखते थे
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
लब पे सुर्ख़ी की जगह जो मुस्कुराहट मल रहे हैं
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
हिज्र के तपते मौसम में भी दिल उन से वाबस्ता है
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
मैं अपने सूरज के साथ ज़िंदा रहूँगा तो ये ख़बर मिलेगी
ग़ुलाम हुसैन साजिद
फ़सील-ए-जिस्म की ऊँचाई से उतर जाएँ
ग़ुलाम हुसैन अयाज़
कोई जुगनू कोई तारा कोई सूरज कोई चाँद
ग़ुफ़रान अमजद
अभी आइना मुज़्महिल है
ग़ुफ़रान अमजद
कोई दो-चार नहीं महव-ए-तमाशा सब हैं
ग़ुफ़रान अमजद
कोई दो चार नहीं महव-ए-तमाशा सब हैं
ग़ुफ़रान अमजद
तारीकी में नूर का मंज़र सूरज में शब देखोगे
ग़ज़नफ़र
आँख की पुतली में सूरज सर में कुछ सौदा उगा
ग़यास मतीन
अब तो ख़ुद से भी कुछ ऐसा है बशर का रिश्ता
ग़ौस मोहम्मद ग़ौसी
वो टुकड़ा रात का बिखरा हुआ सा
गौतम राजऋषि
लम्हा गुज़र गया है कि अर्सा गुज़र गया
गौतम राजऋषि
कि इस से पहले ख़िज़ाँ का शिकार हो जाऊँ
गौतम राजऋषि
इस बात को वैसे तो छुपाया न गया है
गौतम राजऋषि
साँप! आ काट मुझे
गौहर नौशाही
मरहला तय कोई बे-मिन्नत-ए-जादा भी तो हो
गौहर होशियारपुरी
रात भी नींद भी कहानी भी
फ़िराक़ गोरखपुरी
ये सूरज क्यूँ भटकता फिर रहा है
फ़ज़्ल ताबिश
आ के हो जा बे-लिबास
फ़ज़्ल ताबिश
ये सन्नाटा बहुत महँगा पड़ेगा
फ़ज़्ल ताबिश
रिश्ता खुजियाया हुआ कुत्ता है
फ़ज़्ल ताबिश
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