कोई जुगनू कोई तारा कोई सूरज कोई चाँद
और अजब बात कि महरूम-ए-उजाला सब हैं
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न सुब्ह वुसअ'त न शाम वुसअ'त
कब से बंजर थी नज़र ख़्वाब तो आया
अभी आइना मुज़्महिल है
दिल की मिट्टी चुपके चुपके रोती है
कोई दो-चार नहीं महव-ए-तमाशा सब हैं
कोई दो चार नहीं महव-ए-तमाशा सब हैं
अजब था ज़ोम कि बज़्म-ए-अज़ा सजाएँगे
इक ख़लिश है मिरे बाहर मिरी दम-साज़ गिरी
मसाफ़त की गराँ हर एक साअ'त टूट जाती है
नवाह-ए-लफ़्ज़-ओ-मआनी में गूँज है किस की