सहर Poetry

दयार-ए-ख़्वाब को निकलूँगा सर उठा कर मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

सुल्तान अख़्तर पटना के नाम

रज़ा नक़वी वाही

कैसे समझेगा सदफ़ का वो गुहर से रिश्ता

अख़्तर हाशमी

किसी की सदा

इब्न-ए-सफ़ी

शाइ'र की इल्तिजा

फ़ज़लुर्रहमान

इक उम्र से जिस को लिए फिरता हूँ नज़र में

अहमद फ़ाख़िर

बन गई नाज़ मोहब्बत तलब-ए-नाज़ के बा'द

अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी

ज़मीं से ता-ब-फ़लक कोई फ़ासला भी नहीं

आरिफ़ अब्दुल मतीन

कोई चराग़ न जुगनू सफ़र में रक्खा गया

वफ़ा नक़वी

सुकूत उस का है सब्र-ए-जमील की सूरत

अज़्म शाकरी

अपना सोचा हुआ अगर हो जाए

अहमद महफ़ूज़

कितनी शिद्दत से तुझे चाहा था

महमूद शाम

इक तेरी बे-रुख़ी से ज़माना ख़फ़ा हुआ

अर्श सिद्दीक़ी

ख़ुश-शनासी का सिला कर्ब का सहरा हूँ मैं

अब्दुल्लाह कमाल

मैं ने अपना वजूद गठड़ी में बाँध लिया

जवाज़ जाफ़री

बेचैनी

दौर आफ़रीदी

ऐ लाहौर

जीलानी कामरान

एक याद

हबीब जालिब

दुश्मन की तरफ़ दोस्ती का हाथ

मुनीर नियाज़ी

दूर किनारा

मीराजी

कितने पुर-हौल अँधेरों से गुज़र कर ऐ दोस्त

बहार बन के जब से वो मिरे जहाँ पे छाए हैं

गुम-कर्दा-राह ख़ाक-बसर हूँ ज़रा ठहर

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

सो लेने दो अपना अपना काम करो चुप हो जाओ

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

अपनी तश्हीर करे या मुझे रुस्वा देखे

ज़िया शबनमी

तुलूअ'

ज़िया जालंधरी

ख़ुद फ़रेब

ज़िया जालंधरी

हाबील

ज़िया जालंधरी

तुम्हारी चाहत की चाँदनी से हर इक शब-ए-ग़म सँवर गई है

ज़िया जालंधरी

शम-ए-हक़ शोबदा-ए-हर्फ़ दिखा कर ले जाए

ज़िया जालंधरी

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