सहर Poetry (page 21)

सज़ा ही दी है दुआओं में भी असर दे कर

इफ़्तिख़ार नसीम

है जुस्तुजू अगर इस को इधर भी आएगा

इफ़्तिख़ार नसीम

दश्त-ए-बे-सम्त में रुकना भी सफ़र ऐसा था

इफ़्तिख़ार बुख़ारी

पस च-बायद-कर्द

इफ़्तिख़ार आरिफ़

नाकामी

इफ़्तिख़ार आज़मी

रब्त असीरों को अभी उस गुल-ए-तर से कम है

इदरीस बाबर

ये तकल्लुफ़ ये मुदारात समझ में आए

इबरत मछलीशहरी

रात आ कर गुज़र भी जाती है

इब्न-ए-इंशा

शाम-ए-ग़म की सहर नहीं होती

इब्न-ए-इंशा

अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले

इब्न-ए-इंशा

माहौल से जैसे कि घुटन होने लगी है

हुसैन ताज रिज़वी

ख़यालों ख़यालों में किस पार उतरे

हुसैन आबिद

वक़्त गर्दिश में ब-अंदाज़-ए-दिगर है कि जो था

हुरमतुल इकराम

तय किया इस तरह सफ़र तन्हा

हुरमतुल इकराम

पास-ए-नामूस-ए-तमन्ना हर इक आज़ार में था

होश तिर्मिज़ी

उन के सब झूट मो'तबर ठहरे

हिना हैदर

मुद्दत के बाद

हिमायत अली शाएर

हरीफ़-ए-विसाल

हिमायत अली शाएर

रात सुनसान दश्त ओ दर ख़ामोश

हिमायत अली शाएर

नाला-ए-ग़म शो'ला-असर चाहिए

हिमायत अली शाएर

तड़प के हाल सुनाया तो आँख भर आई

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

बहुत कठिन है डगर थोड़ी दूर साथ चलो

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

रौशनी तेज़ करो चाँद सितारो अपनी

हीरा लाल फ़लक देहलवी

क्या बात है नज़रों से अंधेरा नहीं जाता

हीरा लाल फ़लक देहलवी

क्या गुल खिलाए देखिए तपती हुई हवा

हज़ीं लुधियानवी

इस तरह पैकर-ए-वफ़ा हो जाएँ

हज़ीं लुधियानवी

इस का नहीं है ग़म कोई, जाँ से अगर गुज़र गए

हज़ीं लुधियानवी

इस का नहीं है ग़म कोई जाँ से अगर गुज़र गए

हज़ीं लुधियानवी

आँसू को अपने दीदा-ए-तर से निकालना

हज़ीं लुधियानवी

उस का हाल-ए-कमर खुला हमदम

हातिम अली मेहर

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