रौशनी तेज़ करो चाँद सितारो अपनी
मुझ को मंज़िल पे पहुँचना है सहर होने तक
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तारों से माहताब से और कहकशाँ से क्या
देखूँगा किस क़दर तिरी रहमत में जोश है
मैं तिरा जल्वा तू मेरा दिल है मेरे हम-नशीं
याद इतना है मिरे लब पे फ़ुग़ाँ आई थी
ये और बात है हर शख़्स के गुमाँ में नहीं
दिल शादमाँ हो ख़ुल्द की भी आरज़ू न हो
मिरा ख़त पढ़ लिया उस ने मगर ये तो बता क़ासिद
क्या कहें क्यूँकर हुआ तूफ़ान में पैदा क़फ़स
कू-ए-जानाँ में नहीं कोई गुज़र की सूरत
लोग अंदाज़ा लगाएँगे अमल से मेरे
हो ख़ुदा का करम इरादों पर
रौशन है फ़ज़ा शम्स कोई है न क़मर है