शाम Poetry

सुल्तान अख़्तर पटना के नाम

रज़ा नक़वी वाही

दस्तूर साज़ी की कोशिश

रज़ा नक़वी वाही

ये हसरतें भी मिरी साइयाँ निकाली जाएँ

एहतिमाम सादिक़

शम्अ'

मुबश्शिर अली ज़ैदी

वो हातिफ़ की ज़बान में कलाम करने लगी

जवाज़ जाफ़री

शाइ'र की इल्तिजा

फ़ज़लुर्रहमान

मुद्दतों बा'द वो गलियाँ वो झरोके देखे

महमूद शाम

ग़ुरूब होते हुए सूरजों के पास रहे

वफ़ा नक़वी

मैं किस से पूछता कि भला क्या कमी हुई

नईम गिलानी

सुब्ह का धोका हुआ है शाम पर

फ़ारूक़ इंजीनियर

कितनी शिद्दत से तुझे चाहा था

महमूद शाम

ख़्वाबों ख़यालों की अप्सरा

दौर आफ़रीदी

दूर का सफ़र

बलराज कोमल

मोहब्बत पर यक़ीं था जब

हमीदा शाहीन

टीपू-सुल्तान

इज्तिबा रिज़वी

एक याद

हबीब जालिब

ख़ामोशी का शोर

फ़ैसल हाश्मी

आख़िरी आदमी

फ़ख़्र-ए-आलम नोमानी

मुग़ल की कार

असद जाफ़री

दुश्मन की तरफ़ दोस्ती का हाथ

मुनीर नियाज़ी

दूर किनारा

मीराजी

इश्क़-आबाद की शाम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सुब्ह बिछड़ कर शाम का व'अदा शाम का होना सहल नहीं

इसी ख़याल में हर शाम-ए-इंतिज़ार कटी

किस तवक़्क़ो' पे शरीक-ए-ग़म-ए-याराँ होंगे

दिल महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम नहीं है

किस के नग़्मे गूँजते हैं ज़िंदगी के साज़ में

पुराने रंग में अश्क-ए-ग़म ताज़ा मिलाता हूँ

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

रास आने लगी थी तन्हाई

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

आता है नज़र अंजाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

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