शाम Poetry (page 35)

एक दुनिया कह रही है कौन किस का आश्ना

हुरमतुल इकराम

पास-ए-नामूस-ए-तमन्ना हर इक आज़ार में था

होश तिर्मिज़ी

जाम-ए-इश्क़ पी चुके ज़िंदगी भी जी चुके

हिलाल फ़रीद

थी अजब ही दास्ताँ जब तमाम हो गई

हिलाल फ़रीद

दिल में इक शोर उठाते हैं चले जाते हैं

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

ऐ शाम-ए-ग़म की गहरी ख़मोशी तुझे सलाम

हीरा लाल फ़लक देहलवी

निय्यत अगर ख़राब हुई है हुज़ूर की

हीरा लाल फ़लक देहलवी

तुलूअ होगा अभी कोई आफ़्ताब ज़रूर

हज़ीं लुधियानवी

मवाद कर के फ़राहम चमकती सड़कों से

हज़ीं लुधियानवी

क्या गुल खिलाए देखिए तपती हुई हवा

हज़ीं लुधियानवी

पर-ए-जिब्रील भी जिस राह में जल जाते हैं

हयात मदरासी

मैं ख़ाल-ओ-ख़द का सरापा तसव्वुरात में था

हयात लखनवी

चैन पहलू में उसे सुब्ह नहीं शाम नहीं

हातिम अली मेहर

बुतों का ज़िक्र करो वाइज़ ख़ुदा को किस ने देखा है

हातिम अली मेहर

आलम-ए-हैरत का देखो ये तमाशा एक और

हातिम अली मेहर

ग़ुर्बत की सुब्ह में भी नहीं है वो रौशनी

हसरत मोहानी

तासीर-ए-बर्क़-ए-हुस्न जो उन के सुख़न में थी

हसरत मोहानी

हाइल थी बीच में जो रज़ाई तमाम शब

हसरत मोहानी

साक़ी हैं रोज़-ए-नौ-बहार यक दो सह चार पंज ओ शश

हसरत अज़ीमाबादी

अब तुझ से फिरा ये दिल-ए-नाकाम हमारा

हसरत अज़ीमाबादी

आता हूँ जब उस गली से सौ सौ ख़्वारी खींच कर

हसरत अज़ीमाबादी

वो मिरे शहर में आता है चला जाता है

हाशिम रज़ा जलालपुरी

उम्र सारी यूँही गुज़ारी है

हसन रिज़वी

ठहरे पानी को वही रेत पुरानी दे दे

हसन रिज़वी

सूरत है वो ऐसी कि भुलाई नहीं जाती

हसन रिज़वी

कोई मौसम भी हम को रास नहीं

हसन रिज़वी

कभी शाम-ए-हिज्र गुज़ारते कभी ज़ुल्फ़-ए-यार सँवारते

हसन रिज़वी

कभी किताबों में फूल रखना कभी दरख़्तों पे नाम लिखना

हसन रिज़वी

अब के यारो बरखा-रुत ने मंज़र क्या दिखलाए हैं

हसन रिज़वी

ख़ल्वत-ए-उम्मीद में रौशन है अब तक वो चराग़

हसन नईम

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