उम्र सारी यूँही गुज़ारी है
उम्र सारी यूँही गुज़ारी है
दिन किसी के हैं शब हमारी है
कह रही है ये शाम-ए-तन्हाई
आज की रात हम पे भारी है
दो-घड़ी प्यार की करें बातें
दिल जलाने को उम्र सारी है
कुछ परिंदे फ़ज़ा में उड़ते हैं
कुछ परिंदों पे ख़ौफ़ तारी है
जैसे सहरा में इक शजर तन्हा
हम ने यूँ ज़िंदगी गुज़ारी है
अपना शेवा मोहब्बतें करना
आगे मर्ज़ी 'हसन' तुम्हारी है
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