मौज Poetry

बच्चों का जुलूस

बलराज कोमल

कितने में बनती है मोहर ऐसी

अहमद जावेद

सुलग रहा है कोई शख़्स क्यूँ अबस मुझ में

अब्दुल्लाह कमाल

लज़्ज़त-ए-हिज्र ने तड़पाया बहुत रुस्वा किया

नसीम शेख़

नद्दी ये जैसे मौज में दरिया से जा मिले

जानाँ मलिक

जब जब मैं ज़िंदगी की परेशानियों में था

तलाश-ए-नूर

दर्शन सिंह

मौसम

बलराज कोमल

दूर किनारा

मीराजी

जब जब मैं ज़िंदगी की परेशानियों में था

बहार हो कि मौज-ए-मय कि तब्अ की रवानियाँ

ले के दिल कहते हो उल्फ़त क्या है

बसाई मैं ने जो क़ल्ब-ए-हज़ीं में

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

बसाई मैं ने जो क़ल्ब-ए-हज़ीं में

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

सफ़र पे जैसे कोई घर से हो के जाता है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

सहरा में घटा का मुंतज़िर हूँ

ज़ुहूर नज़र

शौक़ उर्यां है बहुत जिन के शबिस्तानों में

ज़ुबैर रिज़वी

मैं ने कब बर्क़-ए-तपाँ मौज-ए-बला माँगी थी

ज़ुबैर रिज़वी

है धूप कभी साया शोला है कभी शबनम

ज़ुबैर रिज़वी

कलियाँ चटक रही हैं बहारों की गोद में

ज़ोहरा नसीम

तू कोई सूखा हुआ पत्ता नहीं है कि जिसे

ज़िया जालंधरी

शहर-ए-आशोब

ज़िया जालंधरी

राह-रौ

ज़िया जालंधरी

कसक

ज़िया जालंधरी

इम्कान

ज़िया जालंधरी

हम

ज़िया जालंधरी

हाबील

ज़िया जालंधरी

शम-ए-हक़ शोबदा-ए-हर्फ़ दिखा कर ले जाए

ज़िया जालंधरी

मुंजमिद होंटों पे है यख़ की तरह हर्फ़-ए-जुनूँ

ज़िया जालंधरी

अपने अहवाल पे हम आप थे हैराँ बाबा

ज़िया जालंधरी

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