मौज Poetry (page 3)

कैसी रुकी हुई थी रवानी मिरी तरफ़

ज़फ़र इक़बाल

दरिया-ए-तुंद-मौज को सहरा बताइए

ज़फ़र इक़बाल

अभी तो करना पड़ेगा सफ़र दोबारा मुझे

ज़फ़र इक़बाल

इक नदी में सैकड़ों दरिया की तुग़्यानी मिली

ज़फर इमाम

पल पल जीने की ख़्वाहिश में कर्ब-ए-शाम-ओ-सहर माँगा

ज़फ़र गोरखपुरी

फ़स्ल-ए-गुल को ज़िद है ज़ख़्म दिल का हरा कैसे हो

ज़फ़र गौरी

हिन्दोस्तान

ज़फ़र अली ख़ाँ

पुकारता हूँ कि तुम हासिल-ए-तमन्ना हो

यूसुफ़ ज़फ़र

ख़्वाब आईना कर रही है दिल में

यूसुफ़ हसन

जो डुबोएगी न पहुँचाएगी साहिल पे हमें

यासमीन हमीद

हमें ख़बर थी बचाने का उस में यारा नहीं

यासमीन हमीद

दौलत-ए-दर्द समेटो कि बिखरने को है

यासमीन हमीद

तूफ़ाँ की ज़द पे अपना सफ़ीना जब आ गया

याक़ूब उस्मानी

हल ही न हो जिस का वो मुअम्मा तो नहीं है

याक़ूब उस्मानी

हुसूल-ए-रिज़्क़ के अरमाँ निकालते गुज़री

याक़ूब तसव्वुर

तुम जो आते हो

वज़ीर आग़ा

तुझे भी याद तो होगा

वज़ीर आग़ा

सकता

वज़ीर आग़ा

कराँ-ता-कराँ

वज़ीर आग़ा

किस किस से न वो लिपट रहा था

वज़ीर आग़ा

इस गिर्या-ए-पैहम की अज़िय्यत से बचा दे

वज़ीर आग़ा

बेबसी

वसीम बरेलवी

एक इशारे में बदल जाता है मयख़ाने का नाम

वक़ार बिजनोरी

सनम ने जब लब-ए-गौहर-फ़शान खोल दिए

वलीउल्लाह मुहिब

जी चाहे का'बे जाओ जी चाहे बुत को पूजो

वलीउल्लाह मुहिब

तीरा-बख़्तों को करे है नाला-ए-ग़मगीं ख़राब

वली उज़लत

तीरा-बख़्तों को करे है नाला-ए-ग़मगीं ख़राब

वली उज़लत

मग़्ज़-ए-बहार इस बरस उस बिन बचा न था

वली उज़लत

आशिक़ के मुख पे नैन के पानी को देख तूँ

वली मोहम्मद वली

कुछ समझ कर ही हुआ हूँ मौज-ए-दरिया का हरीफ़

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

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