मौज Poetry (page 4)

ज़ब्त की कोशिश है जान-ए-ना-तवाँ मुश्किल में है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

यही है इश्क़ की मुश्किल तो मुश्किल आसाँ है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

गरेबाँ से तिरे किस ने निकाला सुब्ह-ए-ख़ंदाँ को

वहीदुद्दीन सलीम

गरेबाँ से तिरे किस ने निकाला सुब्ह-ए-ख़ंदाँ को

वहीदुद्दीन सलीम

ख़ुश्क आँखों से उठी मौज तो दुनिया डूबी

वहीद अख़्तर

तुम गए साथ उजालों का भी झूटा ठहरा

वहीद अख़्तर

रुख़्सत-ए-नुत्क़ ज़बानों को रिया क्या देगी

वहीद अख़्तर

जिस को माना था ख़ुदा ख़ाक का पैकर निकला

वहीद अख़्तर

हम ने देखा है मोहब्बत का सज़ा हो जाना

वहीद अख़्तर

इक दश्त-ए-बे-अमाँ का सफ़र है चले-चलो

वहीद अख़्तर

तिरे ग़ुरूर मिरे ज़ब्त का सवाल रहा

विजय शर्मा अर्श

वो मुस्कुरा के मोहब्बत से जब भी मिलते हैं

उनवान चिश्ती

नाज़ कर नाज़ कि ये नाज़ जुदा है सब से

उम्मीद फ़ाज़ली

हो के उस कूचे से आई तो सितम ढा गई क्या

उमर अंसारी

ये बिफरती मौज अंदेशे समुंदर और मैं

तुफ़ैल चतुर्वेदी

आवाज़ हूँ उभर के जो सहरा में खो गई

तुफ़ैल बिस्मिल

चमन में बर्क़ कभी आशियाँ से दूर नहीं

तिश्ना बरेलवी

वो आई शाम-ए-ग़म वक़्फ़-ए-बला होने का वक़्त आया

तिलोकचंद महरूम

किसी की याद को हम ज़ीस्त का हासिल समझते हैं

तिलोकचंद महरूम

इस का गिला नहीं कि दुआ बे-असर गई

तिलोकचंद महरूम

वो अव्वलीं दर्द की गवाही सजी हुई बज़्म-ए-ख़्वाब जैसे

तौसीफ़ तबस्सुम

काश इक शब के लिए ख़ुद को मयस्सर हो जाएँ

तौसीफ़ तबस्सुम

दिल था पहलू में तो कहते थे तमन्ना क्या है

तौसीफ़ तबस्सुम

बजा कि दरपय-ए-आज़ार चश्म-ए-तर है बहुत

तौसीफ़ तबस्सुम

जितने अल्फ़ाज़ हैं सब कहे जा चुके

तारिक़ क़मर

सारी तरतीब-ए-ज़मानी मिरी देखी हुई है

तारिक़ नईम

अब ये हंगामा-ए-दुनिया नहीं देखा जाता

तारिक़ नईम

कुछ दूर तक तो इस की सदा ले गई मुझे

तारिक़ बट

दश्त में जो भी है जैसा मिरा देखा हुआ है

तनवीर सामानी

जचती नहीं कुछ शाही-ओ-इम्लाक नज़र में

तनवीर अंजुम

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