मौज Poetry (page 6)

ये जो हम अतलस ओ किम-ख़्वाब लिए फिरते हैं

सुल्तान अख़्तर

जन्नत से निकाला न जहन्नुम से निकाला

सुहैल अख़्तर

इक मौज-ए-फ़ना थी जो रोके न रुकी आख़िर

सुहैल अहमद ज़ैदी

इम्कान खुले दर का हर आन बहुत रक्खा

सुहैल अहमद ज़ैदी

ख़राब-ए-दीद को यूँ ही ख़राब रहने दे

सुहा मुजद्ददी

बहते पानी की तरह मौज-ए-सदा की सूरत

सोज़ नजीबाबादी

ज़िंदगी तुझ को कहीं पर तो ठहरना होगा

सिया सचदेव

तेरी भँवों की तेग़ के जो रू-ब-रू हुआ

सिराज औरंगाबादी

है दिल में ख़याल-ए-गुल-ए-रुख़्सार किसी का

सिराज औरंगाबादी

दिल में ख़यालात-ए-रंगीं गुज़रते हैं जिऊँ बॉस फूलों के रंगों में रहिए

सिराज औरंगाबादी

दिल ही गिर्दाब-ए-तमन्ना है यहीं डूबते हैं

सिद्दीक़ मुजीबी

बे-कराँ समझा था ख़ुद को कैसे नादानों में था

सिद्दीक़ मुजीबी

अपने सीने को मिरे ज़ख़्मों से भरने वाली

सिद्दीक़ मुजीबी

हवा-ए-इश्क़ में शामिल हवस की लू ही रही

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

सोए पानी के तले डूबे हुए पैकर लिखें

सिब्त अहमद

मिरे दिल की अब ऐ अश्क-ए-नदामत शुस्त-ओ-शू कर दे

श्याम सुंदर लाल बर्क़

उदासी के दलदल में गिरता हुआ दिल

शुमाइला बहज़ाद

ये मकीं क्या ये मकाँ सब ला-मकाँ का खेल है

शुजाअत इक़बाल

अब के बरस हूँ जितना तन्हा

शोज़ेब काशिर

सुरमई रातों से छिनवा कर सहर की रौनक़ें

शोरिश काश्मीरी

वो और होंगे जो वहम-ओ-गुमाँ के साथ चले

शोला हस्पानवी

तेरा चेहरा देख के हर शब सुब्ह दोबारा लिखती है

शोएब निज़ाम

शो'ला-ख़ेज़-ओ-शो'ला-वर अब हर रह-ए-तदबीर है

शिव चरन दास गोयल ज़ब्त

सोज़-ए-अलम से दूर हुआ जा रहा हूँ मैं

शेरी भोपाली

नदी किनारे जो नग़्मा-सरा मलंग हुए

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

लेते ही दिल जो आशिक़-ए-दिल-सोज़ का चले

ज़ौक़

दिखला न ख़ाल-ए-नाफ़ तू ऐ गुल-बदन मुझे

ज़ौक़

दरिया-ए-अश्क चश्म से जिस आन बह गया

ज़ौक़

बर्क़ मेरा आशियाँ कब का जला कर ले गई

ज़ौक़

कम-फ़हम हैं तो कम हैं परेशानियों में हम

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

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