कुछ समझ कर ही हुआ हूँ मौज-ए-दरिया का हरीफ़
वर्ना मैं भी जानता हूँ आफ़ियत साहिल में है
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Habib Jalib
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(915) Peoples Rate This
इस ज़माने में ख़मोशी से निकलता नहीं काम
तल्ख़ी-कश-ए-नौमीदी-ए-दीदार बहुत हैं
शर्मिंदा किया जौहर-ए-बालिग़-नज़री ने
रुख़-ए-रौशन से यूँ उट्ठी नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
दिल के कहने पे चलूँ अक़्ल का कहना न करूँ
सीने में मिरे दाग़-ए-ग़म-ए-इश्क़-ए-नबी है
सुरूर-अफ़्ज़ा हुई आख़िर शराब आहिस्ता आहिस्ता
संग-ए-तिफ़्लाँ फ़िदा-ए-सर न हुआ
हम ने आलम से बेवफ़ाई की
कठिन है काम तो हिम्मत से काम ले ऐ दिल
अभी होते अगर दुनिया में 'दाग़'-ए-देहलवी ज़िंदा
शौक़ ने इशरत का सामाँ कर दिया