रुख़-ए-रौशन से यूँ उट्ठी नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
कि जैसे हो तुलू-ए-आफ़्ताब आहिस्ता आहिस्ता
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मैं ने माना काम है नाला दिल-ए-नाशाद का
देखना वो गिर्या-ए-हसरत-मआल आ ही गया
था क़फ़स का ख़याल दामन-गीर
बेजा है तिरी जफ़ा का शिकवा
उस दिल-नशीं अदा का मतलब कभी न समझे
कठिन है काम तो हिम्मत से काम ले ऐ दिल
नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले
शौक़ देता है मुझे पैग़ाम-ए-इश्क़
न वो पूछते हैं न कहता हूँ मैं
और इशरत की तमन्ना क्या करें
आप अपना रू-ए-ज़ेबा देखिए