था क़फ़स का ख़याल दामन-गीर
उड़ सके हम न बाल ओ पर ले कर
Anwar Masood
Allama Iqbal
Habib Jalib
Gulzar
Rahat Indori
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(558) Peoples Rate This
आज़ाद उस से हैं कि बयाबाँ ही क्यूँ न हो
हम ने आलम से बेवफ़ाई की
'वहशत' उस बुत ने तग़ाफ़ुल जब किया अपना शिआर
कहते हो अब मिरे मज़लूम पे बेदाद न हो
सीने में मिरे दाग़-ए-ग़म-ए-इश्क़-ए-नबी है
ज़बरदस्ती ग़ज़ल कहने पे तुम आमादा हो 'वहशत'
हर चंद 'वहशत' अपनी ग़ज़ल थी गिरी हुई
मुझ से जो न मिलते वो कोई रात न थी
ज़िंदगी अपनी किसी तरह बसर करनी है
पैमान-ए-वफ़ा-ए-यार हैं हम
क्या है कि आज चलते हो कतरा के राह से
दर्द आ के बढ़ा दो दिल का तुम ये काम तुम्हें क्या मुश्किल है