अमकां Poetry

शुआएँ ऐसे मिरे जिस्म से गुज़रती गईं

अली अकबर अब्बास

पेश हर अहद को इक तेग़ का इम्काँ क्यूँ है

अली अकबर अब्बास

क़हत-ए-वफ़ा-ए-वा'दा-ओ-पैमाँ है इन दिनों

ज़ुहूर नज़र

वो बाद-ए-गर्म था बाद-ए-सबा के होते हुए

ज़ुबैर रिज़वी

क़सीदे ले के सारे शौकत-ए-दरबार तक आए

ज़ुबैर रिज़वी

तिरी ख़्वाहिश किसी इम्काँ की सूरत

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

रिफ़ाक़त की ये ख़्वाहिश कह रही है

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

हम

ज़िया जालंधरी

कितने इम्काँ थे जो ख़्वाबों के सहारे देखे

ज़िया जालंधरी

जब उन्ही को न सुना पाए ग़म-ए-जाँ अपना

ज़िया जालंधरी

आज ही महफ़िल सर्द पड़ी है आज ही दर्द फ़रावाँ है

ज़िया जालंधरी

नज़्म

ज़ीशान साहिल

मिरे दिल के टूटे सितारे को तुम ने

ज़ीशान साहिल

ये इश्क़ इक इम्तिहान तो ले मैं पास कर लूँ

ज़ीशान साजिद

सेहन-ए-चमन में जाना मेरा और फ़ज़ा में बिखर जाना

ज़ेब ग़ौरी

ग़ार के मुँह से ये चट्टान हटाने के लिए

ज़ेब ग़ौरी

इश्क़ इक हिकायत है सरफ़रोश दुनिया की

ज़हीर काश्मीरी

अपने दिल-ए-मुज़्तर को बेताब ही रहने दो

ज़फ़र हमीदी

साँस लेने को ही जीना नहीं कहते हैं 'ज़फ़र'

यूसुफ़ ज़फ़र

यारो हर ग़म ग़म-ए-याराँ है क़रीब आ जाओ

यूसुफ़ ज़फ़र

यारो हर ग़म ग़म-ए-याराँ है क़रीब आ जाओ

यूसुफ़ ज़फ़र

आप में क्यूँकर रहे कोई ये सामाँ देख कर

यगाना चंगेज़ी

ज़र्रा हरीफ़-ए-मेहर दरख़्शाँ है आज कल

वासिफ़ देहलवी

हम-सफ़र थम तो सही दिल को सँभालूँ तो चलूँ

वासिफ़ देहलवी

जमालियात

वामिक़ जौनपुरी

दिल तोड़ कर वो दिल में पशीमाँ हुआ तो क्या

वामिक़ जौनपुरी

जिस को माना था ख़ुदा ख़ाक का पैकर निकला

वहीद अख़्तर

दर-ओ-बस्त-ए-अनासिर पारा पारा होने वाला है

तारिक़ नईम

इंसान की हालत पर अब वक़्त भी हैराँ है

सय्यद सग़ीर सफ़ी

तौर अपना है अलग ईं से अलग आँ से अलग

सय्यद जमील मदनी

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