अमकां Poetry (page 4)

काँटों में ही कुछ ज़र्फ़-ए-समाअत नज़र आए

इमदाद निज़ामी

किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं

इफ़्तिख़ार मुग़ल

मैं ग़ज़ल का हर्फ़-ए-इम्काँ मसनवी का ख़्वाब हूँ

हसन नईम

शाम से ज़ोरों पे तूफ़ाँ है बहुत

हामिदी काश्मीरी

है यक दो नफ़स सैर-ए-जहान-ए-गुज़राँ और

हमीद नसीम

जितने अच्छे लोग हैं वो मुझ से वाबस्ता रहे

हमीद अलमास

हैं और कई रेत के तूफ़ाँ मिरे आगे

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

न होते शाद आईन-ए-गुलिस्ताँ देखने वाले

ग़ौस मोहम्मद ग़ौसी

है कहाँ तमन्ना का दूसरा क़दम या रब

ग़ालिब

शब ख़ुमार-ए-शौक़-ए-साक़ी रुस्तख़ेज़-अंदाज़ा था

ग़ालिब

पा-ब-दामन हो रहा हूँ बस-कि मैं सहरा-नवर्द

ग़ालिब

कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया

ग़ालिब

हम से खुल जाओ ब-वक़्त-ए-मय-परस्ती एक दिन

ग़ालिब

कोहसारों में नहीं है कि बयाबाँ में नहीं

फ़ाज़िल अंसारी

गुलज़ार में एक फूल भी ख़ंदाँ तो नहीं है

फ़ाज़िल अंसारी

ग़ुबार-ए-तंग-ज़ेहनी सूरत-ए-ख़ंजर निकलता है

फ़सीह अकमल

नज़्म

फ़ारूक़ मुज़्तर

शोर-ए-बरबत-ओ-नय

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

अगस्त-1952

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ना-सज़ा आलम-ए-इम्काँ में सज़ा लगता है

एजाज़ सिद्दीक़ी

मिलाऊँ किस की आँखों से मैं अपनी चश्म-ए-हैराँ को

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

दिलकशी नाम को भी आलम-ए-इम्काँ में नहीं

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

ब-ज़ाहिर तुझ से मिलने का कोई इम्काँ नहीं है

बुशरा फर्रुख

बरहमन मुझ को बनाना न मुसलमाँ करना

बेदम शाह वारसी

राज़ है इबरत-असर फ़ितरत की हर तहरीर का

बेबाक भोजपुरी

ख़ाक करती है ब-रंग-ए-चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम रक़्स

बयान मेरठी

मेरे रोने पर किसी की चश्म गिर्यां हाए हाए

बासित भोपाली

इक हुस्न-ए-बे-मिसाल के जो रू-ब-रू हूँ मैं

बशीर सैफ़ी

क्या ख़बर थी कि कभी बे-सर-ओ-सामाँ होंगे

बाक़र मेहदी

अब उजड़ने के हम न बसने के

बकुल देव

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