है कहाँ तमन्ना का दूसरा क़दम या रब
हम ने दश्त-ए-इम्काँ को एक नक़्श-ए-पा पाया
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जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैदा करे कोई
न हुई गर मिरे मरने से तसल्ली न सही
रहा गर कोई ता-क़यामत सलामत
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं
घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करता
तंगी-ए-दिल का गिला क्या ये वो काफ़िर-दिल है
दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं
दे मुझ को शिकायत की इजाज़त कि सितमगर
दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या
हुस्न-ए-बे-परवा ख़रीदार-ए-माता-ए-जल्वा है
रुख़-ए-निगार से है सोज़-ए-जावेदानी-ए-शमा
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे