दे मुझ को शिकायत की इजाज़त कि सितमगर
कुछ तुझ को मज़ा भी मिरे आज़ार में आवे
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बज़्म-ए-शाहंशाह में अशआर का दफ़्तर खुला
जानता हूँ सवाब-ए-ताअत-ओ-ज़ोहद
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
जल्वे का तेरे वो आलम है कि गर कीजे ख़याल
क्यूँ न फ़िरदौस में दोज़ख़ को मिला लें यारब
बस कि फ़ा'आलुम्मा-युरीद है आज
न हुई गर मिरे मरने से तसल्ली न सही
हाँ ऐ फ़लक-ए-पीर जवाँ था अभी आरिफ़
रोने से और इश्क़ में बे-बाक हो गए
है गै़ब-ए-ग़ैब जिस को समझते हैं हम शुहूद
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है