एहसास Poetry

गुल-दान

आरिफ़ अब्दुल मतीन

मुग़ल की कार

असद जाफ़री

दश्त में धूप की भी कमी है कहाँ

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

हाबील

ज़िया जालंधरी

कितनी देर और है ये बज़्म-ए-तरब-नाक न कह

ज़िया जालंधरी

ख़ाक-ज़ादे ख़ाक में या ख़ाक पर हैं आज भी

ज़मीर अतरौलवी

तख़्ईल का दर खोले हुए शाम खड़ी है

ज़ाहिदा ज़ैदी

जिस रोज़ से अपना मुझे इदराक हुआ है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

वही मिरे ख़स-ओ-ख़ाशाक से निकलता है

ज़फ़र इक़बाल

आतिश-ए-ग़म में भभूका दीदा-ए-नमनाक था

याक़ूब आमिर

उठा दी क़ैद-ए-मज़हब दिल से हम ने

वज़ीर अली सबा लखनवी

अदू-ए-जाँ बुत-ए-बे-बाक निकला

वज़ीर अली सबा लखनवी

जब इंसान को अपना कुछ इदराक हुआ

उमैर मंज़र

इक रोज़ ये सर-रिश्ता-ए-इदराक जला दूँ

सय्यद काशिफ़ रज़ा

फ़र्द को अस्र की रफ़्तार लिए फिरती है

सय्यद हामिद

दो आलम के आफ़ात से दूर कर दे

सुहा मुजद्ददी

हैरान हैं अब जाएँ कहाँ ढूँडने तुम को

सिराज लखनवी

दुनिया का न उक़्बा का कोई ग़म नहीं सहते

सिराज लखनवी

बे-इंतिहा होना है तो इस ख़ाक के हो जाओ

शहपर रसूल

रोज़ ओ शब की गुत्थियाँ आँखों को सुलझाने न दे

शमीम हनफ़ी

सर-निगूँ कर ही दिया शौक़-ए-जबीं-साई ने

शकील बदायुनी

जब कभी हम तिरे कूचे से गुज़र जाते हैं

शकील बदायुनी

ज़िंदा रहना है तो साँसों का ज़ियाँ और सही

शकील आज़मी

ज़ब्त-ए-ग़म है मिरी पोशाक मिरी इज़्ज़त रख

शाहिद ज़की

मैं कहाँ तक तुझे सफ़ाई दूँ

शाहिद कमाल

मुश्किल तो न था ऐसा भी अफ़्लाक से रिश्ता

शहबाज़ ख़्वाजा

ख़ाक-ज़ादा हूँ मगर ता-ब फ़लक जाता है

शहबाज़ ख़्वाजा

किस पे क़ाबू जो तुझी पे नहीं क़ाबू अपना

शाद अज़ीमाबादी

तारे जो आसमाँ से गिरे ख़ाक हो गए

शाद आरफ़ी

गौतम-बुद्ध

सीमाब अकबराबादी

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