एहसास Poetry (page 2)

वुसअतें महदूद हैं इदराक-ए-इंसाँ के लिए

सीमाब अकबराबादी

कमाल-ए-इलम ओ तहक़ीक़-ए-मुकम्मल का ये हासिल है

सीमाब अकबराबादी

जब आह भी चुप हो तो ये सहराई करे क्या

सरवत ज़ेहरा

ज़िंदगी के सब उभरते और ढलते ज़ाविए

सरवत मुख़तार

वो पल

सलमान अंसारी

पेश-ए-इदराक मिरी फ़िक्र के शाने खुल जाएँ

सलीम शुजाअ अंसारी

ख़ाक-बस्ता हैं तह-ए-ख़ाक से बाहर न हुए

सलीम शुजाअ अंसारी

फ़स्ल-ए-जुनूँ में दामन-ओ-दिल चाक भी नहीं

सलीम फ़राज़

ख़ैर का तुझ को यक़ीं है और उस को शर का है

सलीम अहमद

इस जिस्म की है पाँच अनासिर से बनावट

साहिर देहल्वी

हैं सात ज़मीं के तबक़ और सात हैं अफ़्लाक

साहिर देहल्वी

इस से पहले कि किसी घाट उतारे जाते

सफ़दर सलीम सियाल

आँख खुली तो मुझ को ये इदराक हुआ

राशिद हामिदी

अज़्म-ए-बुलंद जो दिल-ए-बेबाक में रहा

राशिद आज़र

रुके हुए हैं जो दरिया उन्हें रवानी दे

रशीदुज़्ज़फ़र

दिला मा'शूक़ जो होता है वो सफ़्फ़ाक होता है

रशीद लखनवी

बारिश नहीं लाती कभी अफ़्लाक से ख़ुशबू

रऊफ़ अमीर

हर शख़्स यहाँ साहिब-ए-इदराक नहीं है

राणा गन्नौरी

हम न होते काख़-ए-मुश्त-ए-ख़ाक होता ग़ालिबन

राही फ़िदाई

सीप मुट्ठी में है आफ़ाक़ भी हो सकता है

इंजील सहीफ़ा

अगर है रेत की दीवार ध्यान टूटेगा

इम्तियाज़ अहमद राही

बदन पे पैरहन-ए-ख़ाक के सिवा क्या है

हिमायत अली शाएर

तारीख़ की अदालत

हसन हमीदी

इदराक

हामिदी काश्मीरी

मता-ए-दर्द का ख़ूगर मिरी तलाश में है

हैदर अली जाफ़री

मेरी शाएरी

हफ़ीज़ जालंधरी

उभरे जो ख़ाक से वो तह-ए-ख़ाक हो गए

हफ़ीज़ जालंधरी

कुछ भी दुश्वार नहीं अज़्म-ए-जवाँ के आगे

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

है पर-ए-सरहद-ए-इदराक से अपना मसजूद

ग़ालिब

रहा गर कोई ता-क़यामत सलामत

ग़ालिब

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