उठा दी क़ैद-ए-मज़हब दिल से हम ने
क़फ़स से ताइर-ए-इदराक निकला
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न पढ़ा यार ने अहवाल-ए-शिकस्ता मेरा
हैं वो सूफ़ी जो कभी नाला-ए-नाक़ूस सुना
सज दिया हैरत-ए-उश्शाक़ ने इस बुत का मकाँ
अब तो साहब की हुई ख़ातिर जम्अ'
रंग है ऐ साक़ी-ए-सरशार क़ैसर-बाग़ में
आप ही अपने ज़रा जौर-ओ-सितम को देखें
दिल-ए-पुर दाग़ बाग़ किस का है
आप अपनी बेवफ़ाई देखिए
ऐ सबा क़िल'अ-ए-हस्ती से जो दम घबराया
अहवाल-ए-मज़ाहिब से ये साबित हुआ हम को
बाग़-ए-आलम में है बे-रंग बयान-ए-वाइ'ज़
आदम से बाग़-ए-ख़ुल्द छुटा हम से कू-ए-यार