गुबार Poetry

किसी की सदा

इब्न-ए-सफ़ी

ख़्वाहिश

हारिस ख़लीक़

गाँधी के बा'द

इज़हार मलीहाबादी

बीते हुए कल का इंतिज़ार

एहतिशाम अख्तर

हम-ज़ाद

फ़ैसल हाश्मी

ज़िंदगी और मौत

फ़ज़लुर्रहमान

गुम-कर्दा-राह ख़ाक-बसर हूँ ज़रा ठहर

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

बैठे बैठे इसी ग़ुबार के साथ

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

कुछ ख़ाक से है काम कुछ इस ख़ाक-दाँ से है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

सुब्ह से शाम तक

ज़िया जालंधरी

हरजाई

ज़िया जालंधरी

तुम्हारी चाहत की चाँदनी से हर इक शब-ए-ग़म सँवर गई है

ज़िया जालंधरी

एक तिलिस्मी खेल

ज़ेहरा निगाह

रात अजब आसेब-ज़दा सा मौसम था

ज़ेहरा निगाह

कहाँ बशारत-ए-फ़स्ल-ए-बहार लाई थी

ज़िशान इलाही

क्या मिला क़ैस को गर्द-ए-रह-ए-सहरा हो कर

ज़ेबा

फिर एक नक़्श का नैरंग 'ज़ेब' बिखरेगा

ज़ेब ग़ौरी

मैं ने बेताबाना बढ़ कर दश्त में आवाज़ दी

ज़ेब ग़ौरी

एक झोंका हवा का आया 'ज़ेब'

ज़ेब ग़ौरी

पहले मुझ को भी ख़याल-ए-यार का धोका हुआ

ज़ेब ग़ौरी

मेरा अदम वजूद भी क्या ज़र-निगार था

ज़ेब ग़ौरी

मैं तिश्ना था मुझे सर-चश्मा-ए-सराब दिया

ज़ेब ग़ौरी

बुझते सूरज ने लिया फिर ये सँभाला कैसा

ज़ेब ग़ौरी

दरिया का चढ़ाव बाँध लेना

ज़काउद्दीन शायाँ

कहाँ तक काविश-ए-इसबात-ए-पैहम

ज़ाहिदा ज़ैदी

नाइन इलेवन

ज़ाहिद मसूद

मेरा ग़ुस्सा कहाँ है?

ज़ाहिद इमरोज़

हम इज़ाफ़ी मिट्टी से बने

ज़ाहिद इमरोज़

दिल गया दिल का निशाँ बाक़ी रहा

ज़हीर देहलवी

बज़्म-ए-दुश्मन में जा के देख लिया

ज़हीर देहलवी

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