गुबार Poetry (page 19)

हसीन ख़्वाब न दे अब यक़ीन-ए-सादा दे

अब्दुल्लाह कमाल

कब करे क़स्द यार आवन का

अब्दुल वहाब यकरू

अदब में मुद्दई-ए-फ़न तो बे-शुमार मिले

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

मिरे दिल में है कि पूछूँ कभी मुर्शिद-ए-मुग़ाँ से

अब्दुल मजीद सालिक

हर दिल-फ़रेब चीज़ नज़र का ग़ुबार है

अब्दुल हमीद अदम

कभी नुमायाँ कभी तह-नशीं भी रहते हैं

अब्दुल अहद साज़

पस-ए-ग़ुबार भी उड़ता ग़ुबार अपना था

अब्बास ताबिश

सदा-ए-ज़ात के ऊँचे हिसार में गुम है

अब्बास ताबिश

पस-ए-ग़ुबार मदद माँगते हैं पानी से

अब्बास ताबिश

पस-ए-ग़ुबार भी उड़ता ग़ुबार अपना था

अब्बास ताबिश

आँखों को नक़्श-ए-पा तिरा दिल को ग़ुबार कर दिया

आतिफ़ वहीद 'यासिर'

ताब-ए-दीदार जू लाए मुझे वो दिल देना

आसी ग़ाज़ीपुरी

ज़ंजीर से जुनूँ की ख़लिश कम न हो सकी

आल-ए-अहमद सूरूर

ख़्वाबों से यूँ तो रोज़ बहलते रहे हैं हम

आल-ए-अहमद सूरूर

हज़ार जान से साहब निसार हम भी हैं

आग़ा अकबराबादी

दिल में तिरे ऐ निगार क्या है

आग़ा अकबराबादी

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