हर दिल-फ़रेब चीज़ नज़र का ग़ुबार है
आँखें हसीन हों तो ख़िज़ाँ भी बहार है
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जब तिरे नैन मुस्कुराते हैं
आगही में इक ख़ला मौजूद है
वो जो तेरे फ़क़ीर होते हैं
ज़ौक़-ए-परवाज़ अगर रहे ग़ालिब
किसी हसीं से लिपटना अशद ज़रूरी है
ख़ू-ए-लैल-ओ-नहार देखी है
ख़ैरात सिर्फ़ इतनी मिली है हयात से
सो भी जा ऐ दिल-ए-मजरूह बहुत रात गई
सो रही है गुलों के बिस्तर पर
बे-सबब क्यूँ तबाह होता है
शौक़िया कोई नहीं होता ग़लत
आँखों से तिरी ज़ुल्फ़ का साया नहीं जाता