शौक़िया कोई नहीं होता ग़लत
इस में कुछ तेरी रज़ा मौजूद है
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माह-ओ-अंजुम के सर्द होंटों पर
ज़िंदगी है कि इक हसीन सज़ा
शब की बेदारियाँ नहीं अच्छी
बस इस क़दर है ख़ुलासा मिरी कहानी का
ऐ दोस्त मोहब्बत के सदमे तन्हा ही उठाने पड़ते हैं
सवाल कर के मैं ख़ुद ही बहुत पशेमाँ हूँ
सूरत के आइने में दिल-ए-पाएमाल देख
कौन अंगड़ाई ले रहा है 'अदम'
भूली-बिसरी बातों से क्या तश्कील-ए-रूदाद करें
हर परी-वश को ख़ुदा तस्लीम कर लेता हूँ मैं
ये रोज़-मर्रा के कुछ वाक़िआत-ए-शादी-ओ-ग़म
झाड़ कर गर्द-ए-ग़म-ए-हस्ती को उड़ जाऊँगा मैं