कॉलर Poetry

बटे रहोगे तो अपना यूँही बहेगा लहू

हबीब जालिब

क़यामत है शब-ए-वादा का इतना मुख़्तसर होना

यगाना चंगेज़ी

है मिरे पहलू में और मुझ को नज़र आता नहीं

वलीउल्लाह मुहिब

जूँ गुल अज़-बस-कि जुनूँ है मिरा सामान के सात

वली उज़लत

गर्मियाँ शोख़ियाँ किस शान से हम देखते हैं

वाजिद अली शाह अख़्तर

हवा रुकी है तो रक़्स-ए-शरर भी ख़त्म हुआ

तारिक़ क़मर

ज़ेहन पर बोझ रहा, दिल भी परेशान हुआ

तारिक़ क़मर

ग़ैर के हाथ में उस शोख़ का दामान है आज

ताबाँ अब्दुल हई

उन्स है ख़ाना-ए-सय्याद से गुलशन कैसा

तअशशुक़ लखनवी

सिगरेट और पान का मुकालिमा

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

रेत की तरह किनारों पे हैं डरने वाले

सय्यद आबिद अली आबिद

हम लोग न उलझे हैं न उलझेंगे किसी से

सुरूर बाराबंकवी

ख़्वाब आँखों से चुने नींद को वीरान किया

सुल्तान अख़्तर

मैं क्या करूँ कोई सब मेरे इख़्तियार में है

सुहैल अहमद ज़ैदी

आँखों को मयस्सर कोई मंज़र ही नहीं था

सुहैल अहमद ज़ैदी

इस्लाह-ए-अहल-ए-होश का यारा नहीं हमें

सिराजुद्दीन ज़फ़र

बरपा तिरे विसाल का तूफ़ान हो चुका

शुजा ख़ावर

कुछ हश्र से कम गर्मी-ए-बाज़ार नहीं है

शोहरत बुख़ारी

दिल-शिकस्ता हुए टूटा हुआ पैमान बने

शाज़ तमकनत

जब तक कि गरेबान में यक तार रहेगा

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

बे तिरे जान न थी जान मिरी जान के बीच

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

रुत्बा-ए-दर्द को जब अपना हुनर पहुँचेगा

शहाब जाफ़री

कर के आज़ाद हर इक शहपर-ए-बुलबुल कतरा

शाह नसीर

हो चुकी बाग़ में बहार अफ़सोस

शाह नसीर

किस के हैं ज़ेर-ए-ज़मीं दीदा-ए-नम-नाक हनूज़

मोहम्मद रफ़ी सौदा

गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी

मोहम्मद रफ़ी सौदा

दामन सबा न छू सके जिस शह-सवार का

मोहम्मद रफ़ी सौदा

खींचे है मुझे दस्त-ए-जुनूँ दश्त-ए-तलब में

सज्जाद बाक़र रिज़वी

हम राज़-ए-गिरफ़्तारी-ए-दिल जान गए हैं

सज्जाद बाक़र रिज़वी

एक से एक है ग़ारत-गर-ए-ईमान यहाँ

सैफ़ुद्दीन सैफ़

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