कॉलर Poetry (page 2)

साए जो संग-ए-राह थे रस्ते से हट गए

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

उस मेज़ पर सर झुकाए

सईदुद्दीन

गले लगाएँ बलाएँ लें तुम को प्यार करें

रिन्द लखनवी

टुक बैठ तू ऐ शोख़-ए-दिल-आराम बग़ल में

रज़ा अज़ीमाबादी

कोई भी ज़ोर ख़रीदार पर नहीं चलता

रऊफ़ ख़ैर

हुस्न क्या जिस को किसी हुस्न से ख़तरा न हुआ

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

कौन सा ग़म है मिरे दिल में जो मेहमान नहीं

इन्तेसार हुसैन आबिदी शाहिद

मिल मुझ से ऐ परी तुझे क़ुरआन की क़सम

इंशा अल्लाह ख़ान

जान हम तुझ पे दिया करते हैं

इमाम बख़्श नासिख़

दामन है मेरा दश्त का दामान दूसरा

हसरत अज़ीमाबादी

दिल में हैं वस्ल के अरमान बहुत

हफ़ीज़ जौनपुरी

जब से गया है वो मिरा ईमान-ए-ज़िंदगी

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

नज़्ज़ारा-ए-रुख़-ए-साक़ी से मुझ को मस्ती है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

न पहुँचे हाथ जिस का ज़ोफ़ से ता-ज़ीस्त दामन तक

ग़ुलाम मौला क़लक़

इक ख़लिश है मिरे बाहर मिरी दम-साज़ गिरी

ग़ुफ़रान अमजद

सब ने'मतें हैं शहर में इंसान ही नहीं

फ़रहत एहसास

कभी ख़ुदा कभी इंसान रोक लेता है

फ़रहत एहसास

हुस्न-ए-बुताँ का इश्क़ मेरी जान हो गया

फ़ना बुलंदशहरी

ऐ हम-सफ़रो क्यूँ न यहीं शहर बसा लें

फख्र ज़मान

फूलों से होगी धूल जुदा देखते रहो

एजाज़ अासिफ़

रब्त है नाज़-ए-बुताँ को तो मिरी जान के साथ

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

चाक हो पर्दा-ए-वहशत मुझे मंज़ूर नहीं

दाग़ देहलवी

अब वो ये कह रहे हैं मिरी मान जाइए

दाग़ देहलवी

संग को छोड़ के तू ने कभी सोचा ही नहीं

बबल्स होरा सबा

पास-ए-अदब मुझे उन्हें शर्म-ओ-हया न हो

बेदम शाह वारसी

ऐ जुनूँ हाथ के चलते ही मचल जाऊँगा

बयान मेरठी

मुझ से बिछड़ के वो भी परेशान था बहुत

बाक़ी अहमदपुरी

उसी के ज़ुल्म से मैं हालत-ए-पनाह में था

बख़्श लाइलपूरी

सब रंग में उस गुल की मिरे शान है मौजूद

ज़फ़र

हम ने तिरी ख़ातिर से दिल-ए-ज़ार भी छोड़ा

ज़फ़र

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