खींचे है मुझे दस्त-ए-जुनूँ दश्त-ए-तलब में
दामन जो बचाए हैं गरेबान गए हैं
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फिरती थी ले के शोरिश-ए-दिल कू-ब-कू हमें
अक्सर बैठे तन्हाई की ज़ुल्फ़ें हम सुलझाते हैं
हो दिल-लगी में भी दिल की लगी तो अच्छा है
मिरे सफ़र की हदें ख़त्म अब कहाँ होंगी
वो घिर के आया घटाओं की तीरगी की तरह
सामान-ए-दिल को बे-सर-ओ-सामानियाँ मिलीं
ब-क़द्र-ए-हौसला कोई कहीं कोई कहीं तक है
दिल दश्त है वफ़ूर-ए-तमन्ना ग़ुबार है
कम-ज़र्फ़ भी है पी के बहकता भी बहुत है
क्या मिला ऐ ज़िंदगी क़ानून-ए-फ़ितरत से मुझे
अब वो जो नहीं उन की तमन्ना भी बहुत है