चलो चलें Poetry

कंगाल

हारिस ख़लीक़

बाज़-गश्त

अर्श सिद्दीक़ी

गुंग हैं सारी ज़मीनें आसमाँ हैरत-ज़दा

आज़ाद हुसैन आज़ाद

सुलग रहा है कोई शख़्स क्यूँ अबस मुझ में

अब्दुल्लाह कमाल

न तीरगी के लिए हूँ न रौशनी के लिए

ऐन सलाम

आधों की तरफ़ से कभी पौनों की तरफ़ से

आदिल मंसूरी

दूर का सफ़र

बलराज कोमल

गुल-दान

आरिफ़ अब्दुल मतीन

दिल में क्या क्या गुमाँ गुज़रते हैं

हर वो हंगामा ना-गहाँ गुज़रा

शुऊर-ओ-फ़िक्र से आगे निकल भी सकता है

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

सितमगरी भी मिरी कुश्तगाँ भी मेरे थे

ज़ुबैर रिज़वी

जिस तरह प्यासा कोई आब-ए-रवाँ तक पहुँचे

ज़िया ज़मीर

हम

ज़िया जालंधरी

बड़ा शहर

ज़िया जालंधरी

तिरी निगह से इसे भी गुमाँ हुआ कि मैं हूँ

ज़िया जालंधरी

ख़ुद को समझा है फ़क़त वहम-ओ-गुमाँ भी हम ने

ज़िया जालंधरी

अपने अहवाल पे हम आप थे हैराँ बाबा

ज़िया जालंधरी

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ज़ीशान साहिल

कैसी ज़मीं सुकून कहाँ का कहाँ की छाँव

ज़िशान इलाही

ऐसी तश्बीह फ़क़त हुस्न की बदनामी है

ज़ेबा

अमीरों के बुरे अतवार को जो ठीक समझे है

ज़मीर अतरौलवी

ख़याल-ओ-ख़्वाब में डूबी दीवार-ओ-दर बनाती हैं

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

ग़ज़ल के शानों पे ख़्वाब-ए-हस्ती ब-चश्म-ए-पुर-नम ठहर गए हैं

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

दर्द को ज़ब्त की सरहद से गुज़र जाने दो

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

बदन के दोश पे साँसों का मक़बरा मैं हूँ

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

मेरे ख़्वाबों का कभी जब आसमाँ रौशन हुआ

ज़की तारिक़

बू-ए-गुल रक़्स में है बाद-ए-ख़िज़ाँ रक़्स में है

ज़ाहिदा ज़ैदी

गुल-अफ़्शानी के दम भरती है चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ क्या क्या

ज़हीर देहलवी

अभी से आ गईं नाम-ए-ख़ुदा हैं शोख़ियाँ क्या-क्या

ज़हीर देहलवी

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