दिल में क्या क्या गुमाँ गुज़रते हैं
मुस्कुराओ न बात से पहले
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मौज-ए-तख़य्युल गुल का तबस्सुम परतव-ए-शबनम बिजली का साया
सुब्ह बिछड़ कर शाम का व'अदा शाम का होना सहल नहीं
कुछ हुस्न के फ़साने तरतीब दे रहा हूँ
बसर करे जो मुजाहिदाना हयात उसे दाइमी मिलेगी
कितने पुर-हौल अँधेरों से गुज़र कर ऐ दोस्त
अब भी जो लोग सर-ए-दार नज़र आते हैं
निगाहों से ना-आश्ना चंद जल्वे
वो दिन गुज़रे कि जब ये ज़िंदगानी इक कहानी थी
क़फ़स भी है यहाँ सय्याद भी गुलचीं भी काँटे भी
ले के दिल कहते हो उल्फ़त क्या है
छुपे तो कैसे छुपे चमन में मिरा तिरा रब्त-ए-वालिहाना