कंगाल

तुम्हें भी मा'लूम है मुझे भी

कि पास मेरे तो कुछ नहीं है

जो ज़र-परस्ती के इस जहाँ में

मुझे भी कुछ मो'तबर बना दे

न क़ीमती है लिबास मेरा

न माल-ओ-दौलत ज़र-ओ-जवाहर

कि जिन में तुम को शरीक कर लूँ

मिरी तो दौलत अजीब सी है

मिरी मता-ए-जहाँ में तुम को

बहुत सी रुस्वाइयाँ मिलेंगी

वफ़ा के आँसू गुमाँ की ख़ुशियाँ

जुनूँ की दानाइयाँ मिलेंगी

मिठास में तल्ख़ियाँ मिलेंगी

क़लम की सच्चाइयाँ मिलेंगी

ख़ुलूस-ए-जज़्बात की लगन की

अथाह गहराइयाँ मिलेंगी

मिरी तो दौलत अजीब सी है

अगर कहो तो शरीक कर लूँ

तुम्हें भी अपनी मता-ए-दिल में

कि पास मेरे तो कुछ नहीं है

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Kangal In Hindi By Famous Poet Haris Khaleeq. Kangal is written by Haris Khaleeq. Complete Poem Kangal in Hindi by Haris Khaleeq. Download free Kangal Poem for Youth in PDF. Kangal is a Poem on Inspiration for young students. Share Kangal with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.