सनम Poetry

क्यूँ यूरिश-ए-तरब में भी ग़म याद आ गए

एहतिशाम हुसैन

रक्खा नहीं ग़ुर्बत ने किसी इक का भरम भी

ज़ुहूर नज़र

नया जन्म

ज़ुबैर रिज़वी

शौक़ उर्यां है बहुत जिन के शबिस्तानों में

ज़ुबैर रिज़वी

बरसों में तुझे देखा तो एहसास हुआ है

ज़ुबैर रिज़वी

तू पशेमाँ न हो मैं शाद हूँ नाशाद नहीं

ज़ेब ग़ौरी

ऐ क़लंदर आ तसव्वुफ़ में सँवर कर रक़्स कर

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

शिकवा नहीं दुनिया के सनम-हा-ए-गिराँ का

ज़की काकोरवी

कुछ ऐसे हाल-ओ-माज़ी तेरे अफ़्साने भी होते हैं

ज़ेब बरैलवी

दिल भी सनम-परस्त नज़र भी सनम-परस्त

ज़हीर काश्मीरी

मरना अज़ाब था कभी जीना अज़ाब था

ज़हीर काश्मीरी

मरना अज़ाब था कभी जीना अज़ाब था

ज़हीर काश्मीरी

दिल मर चुका है अब न मसीहा बना करो

ज़हीर काश्मीरी

जहाँ कुछ लोग दीवाने बने हैं

यज़दानी जालंधरी

आँख दिखलाने लगा है वो फ़ुसूँ-साज़ मुझे

यगाना चंगेज़ी

ख़ाक में मुझ को मिला के वो सनम कहता है

वज़ीर अली सबा लखनवी

रंग है ऐ साक़ी-ए-सरशार क़ैसर-बाग़ में

वज़ीर अली सबा लखनवी

कोई सूरत से गर सफ़ा हो

वज़ीर अली सबा लखनवी

दिल है ग़िज़ा-ए-रंज जिगर है ग़िज़ा-ए-रंज

वज़ीर अली सबा लखनवी

ऐ सनम सब हैं तिरे हाथों से नालाँ आज-कल

वज़ीर अली सबा लखनवी

ज़मीर

वामिक़ जौनपुरी

तुझ से मिल कर दिल में रह जाती है अरमानों की बात

वामिक़ जौनपुरी

क़िर्तास पे नक़्शे हमें क्या क्या नज़र आए

वामिक़ जौनपुरी

शैख़ है तुझ को ही इंकार सनम मेरे से

वलीउल्लाह मुहिब

काफ़िर हूँ गर मैं नाम भी का'बे का लूँ कभी

वलीउल्लाह मुहिब

वाँ जो कुछ का'बे में असरार है अल्लाह अल्लाह

वलीउल्लाह मुहिब

मिरे दिल में हिज्र के बाब हैं तुझे अब तलक वही नाज़ है

वलीउल्लाह मुहिब

ख़ाना-ए-दिल का जो तवाइफ़ है

वलीउल्लाह मुहिब

काफ़िर हुए सनम हम दीं-दार तेरी ख़ातिर

वलीउल्लाह मुहिब

हो जिस क़दर कि तुझ से ऐ पुर-जफ़ा जफ़ा कर

वलीउल्लाह मुहिब

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