काफ़िर हूँ गर मैं नाम भी का'बे का लूँ कभी
वो संग-दिल सनम जो कभू मुझ से राम हो
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हो गधे पर सवार जा काबा
ग़ौर कर देखो तो ये इक तार का बिस्तार है
बुलबुल बजाए अपने तुझे हम-नवा से बहस
तुम गाओ अपने राग को उस पास वाइ'ज़ो
जी चाहे का'बे जाओ जी चाहे बुत को पूजो
ऐ दिल आता है चमन में वो शराबी तू पहुँच
काफ़िर हुए सनम हम दीं-दार तेरी ख़ातिर
नक़्काश-ए-अज़ल ने तो सर-ए-काग़ज़-ए-बाद आह
ख़ाना-ए-दिल का जो तवाइफ़ है
काश हम नाकाम भी काम आएँ तेरे इश्क़ में
ग़म-ए-जाँ तू है अगर राहत-ए-जाँ है तू है
देखा जो कुछ जहाँ में कोई दम ये सब नहीं