हो गधे पर सवार जा काबा
शैख़ ये कूच है सलामत का
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आना है तो आ जाओ यक आन मिरा साहब
तरवार खींच हम को दिखाते हो जब न तब
देखता कुछ हूँ ध्यान में कुछ है
हमारी चाह साहब जानते हैं
दुनिया में क्या किसी से सरोकार है हमें
मय-कदे में मस्त हैं और शोर उन का हाव-हू
मोहब्बत से तरीक़-ए-दोस्ती से चाह से माँगो
काफ़िर हुए सनम हम दीं-दार तेरी ख़ातिर
हर आन यास बढ़नी हर दम उमीद घटनी
उधर वो बे-मुरव्वत बेवफ़ा बे-रहम क़ातिल है
शैख़ है तुझ को ही इंकार सनम मेरे से
उस के कूचे ही में आ निकलूँ हूँ जाऊँ जिस तरफ़