हम हवा-ए-वस्ल में याँ तक फिरे
जो हवस के पाँव में छाले पड़े
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Rahat Indori
Gulzar
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Wasi Shah
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
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तिरे कलाम ने कैसा असर किया वाइ'ज़
शोर रखते हैं जहाँ में जिस क़दर सब्ज़ान-ए-हिंद
जो अज़-ख़ुद-रफ़्ता है गुमराह है वो रहनुमा मेरा
उस बुत ने गुलाबी जो उठा मुँह से लगाई
बुलबुल बजाए अपने तुझे हम-नवा से बहस
न कीजे वो कि मियाँ जिस से दिल कोई हो मलूल
जो अपने जीते-जी को कुएँ में डुबोइए
मिल उस परी से क्या क्या हुआ दिल
हर घड़ी वहम में गुज़रे हैं नए अख़बारात
काश हम नाकाम भी काम आएँ तेरे इश्क़ में
का'बे में वही ख़ुद है वही दैर में है आप