इन दो के सिवा कोई फ़लक से न हुआ पार
या तीर मिरी आह का या उस की नज़र का
Anwar Masood
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
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Habib Jalib
Gulzar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
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मिरे दिल में हिज्र के बाब हैं तुझे अब तलक वही नाज़ है
हम हवा-ए-वस्ल में याँ तक फिरे
देखा जो कुछ जहाँ में कोई दम ये सब नहीं
वाँ जो कुछ का'बे में असरार है अल्लाह अल्लाह
हमारी चाह साहब जानते हैं
दिला ये मय-कदा-ए-इश्क़ है शराब तू पी
है मिरे पहलू में और मुझ को नज़र आता नहीं
शैख़ है तुझ को ही इंकार सनम मेरे से
काफ़िर हुए सनम हम दीं-दार तेरी ख़ातिर
मय-ए-गुल-गूँ के जो शीशे में परी रहती है
उस के कूचे ही में आ निकलूँ हूँ जाऊँ जिस तरफ़
ग़ौर कर देखो तो ये इक तार का बिस्तार है