बर्ग Poetry

वही मैं हूँ वही मेरी कहानी है

मोईन निज़ामी

उठा कर बर्क़-ओ-बाराँ से नज़र मंजधार पर रखना

ज़ुबैर शिफ़ाई

ज़मीं से ता-ब-फ़लक कोई फ़ासला भी नहीं

आरिफ़ अब्दुल मतीन

दूर का सफ़र

बलराज कोमल

किस तरह रात की दहलीज़ कोई पार करे

फ़ैसल हाश्मी

मुझे तलाश करो

अहमद नदीम क़ासमी

ज़ुल्म तो ये है कि शाकी मिरे किरदार का है

ज़ुहूर नज़र

वो बाद-ए-गर्म था बाद-ए-सबा के होते हुए

ज़ुबैर रिज़वी

दिनों में दिन थे शबों में शबें पड़ी हुई थीं

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

ताबा कै

ज़िया जालंधरी

शादाब शाख़-ए-दर्द की हर पोर क्यूँ नहीं

ज़िया जालंधरी

लो आज समुंदर के किनारे पे खड़ा हूँ

ज़िया फ़तेहाबादी

ढला न संग के पैकर में यार किस का था

ज़ेब ग़ौरी

मेरे ख़ुर्शीद ओ क़मर आए नहीं

ज़मीर अज़हर

उस का ख़याल दिल में घड़ी दो घड़ी रहे

ज़करिय़ा शाज़

वो बहर-ओ-बर में नहीं और न आसमाँ में है

ज़ाहिद चौधरी

ज़ख़्म-ए-ताज़ा बर्ग-ए-गुल में मुंतक़िल होते गए

ज़हीर सिद्दीक़ी

बे-बर्ग-ओ-बार राह में सूखे दरख़्त थे

ज़हीर सिद्दीक़ी

हाथ से हैहात क्या जाता रहा

ज़हीर देहलवी

सहरा का सफ़र था तो शजर क्यूँ नहीं आया

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

यक़ीं की ख़ाक उड़ाते गुमाँ बनाते हैं

ज़फ़र इक़बाल

तिरे रास्तों से जभी गुज़र नहीं कर रहा

ज़फ़र इक़बाल

हम ने आवाज़ न दी बर्ग ओ नवा होते हुए

ज़फ़र इक़बाल

तिरा यक़ीन हूँ मैं कब से इस गुमान में था

ज़फ़र गौरी

बाग़-ए-आलम में है बे-रंग बयान-ए-वाइ'ज़

वज़ीर अली सबा लखनवी

ख़ुदा ही पहुँचे फ़रियादों को हम से बे-नसीबों के

वली उज़लत

उम्र को करती हैं पामाल बराबर यादें

वहीद अख़्तर

रात भर ख़्वाब के दरिया में सवेरा देखा

वहीद अख़्तर

नूर-जहाँ का मज़ार

तिलोकचंद महरूम

था पस-ए-मिज़्गान-तर इक हश्र बरपा और भी

तौसीफ़ तबस्सुम

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